उम्र ऐसे ये ढलने लगी हैं,
मेरी नजर तेरे सीने पे लगी है.
कभी मुझसे भी आके मिल, ए जालिम,
मोहब्बत अब अगन बन गयी है.
तेरी मंजिल मेरी ये तड़प हैं,
मेरी चाहत है पाना तुझे।
अपनी ये जिद छोड़ भी दे, ए जालिम,
जिंदगी अब कहर बन गयी है.
लगेगी रोज भीड़ तेरी दीदार पे,
जिंदगी है तनहा ये बिना तेरे श्रृंगार के.
पर्दा ये अब हटा भी दे, ए जालिम,
दुरी ये अब जहर बन गयी है.
परमीत सिंह धुरंधर
zindgi ko aapni aapne dekh to liya….
kabhi hummari ko bhi dekh lete …..
zalim kahne se pahele… hummari duvida ko dekh bhi lete…..
pyaas yaha bhi hai waha bhi……
aag yaha bhi hai waha bhi hai…..
par daar lagta hai…..
ke kahi iss aag mai hum jal na jaye ……
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