भारतीय नारी और उसकी सुरक्षा


धरती बेचैन हैं,
बादल बेताब है.
ऐसी है मोहब्बत,
की दोनों बेलगाम हैं.
वो बरसता हैं उमड़-उमड़ के,
वो लहराती हैं मचल-मचल के.
दोनों के बीच है दूरी, लाख योजन की,
पर रिश्ता ये बेमिसाल है.
जब पतझड़ आता हैं,
सब कुछ हर जाता है.
अपने योवन में मस्त बैल,
दौड़ – दौड़ के,
सुनी धरती को सजाता हैं.
तो कोना – कोना धरती का,
सोना बनके लहलहाता हैं.
अनपढ़ – गवार, भारत का किसान,
जिसकी मुठ्ठी में, भूख और प्यास है.
जब हल लिए काँधे पे,
खेतो में जाता है,
तो सावन छा जाता है.
इठलाती है धरती दुल्हन सी,
और खेत – खलिहान भर जाता है.
ऐसी है मोहब्बत,
रिश्ता ये बेमिसाल है.

परमीत सिंह धुरंधर

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