पलकवाँ ना गिरे लोग क ,
देखी हलकवाँ सुखी जाला l
गोरी के जवनियाँ के ,
सारा जिला में बा हाला l
लगावेले कजरवाँ जब ,
दिन में रात होइ जाला l
चँदवो मलिन होके ,
घाटा में छिपी जाला l
केशिया बिखरावे जब ,
सावन के घटा छा जाला l
चूमेला गोरी के अचरियाँ के ,
धरती पे आकाश आई जाला l
पतली कमरिया से जब ,
जोबना के भार ना सहाला l
तब पनियाँ गगरियाँ के ,
देहिया में छलक छलक जाला l
सायवाँ उठवलस जब ,
हिलेला मलमलिया के नाला l
जवनका के का कहे के ,
बुढ़वों में जोश भर जाला l
सरवाँ घर घरे गगरी जब ,
नितंबवाँ वीणा के तम्बू बुझाला l
ऊपर से झुलावे चोटिया के ,
त वीणा में तार बन जाला l
मेनका के रूप पे जब ,
जैसे विश्वामित्र के तपस्या टूटी जाला l
वैसे दिल धुरंधर सिंह के ,
गोरी के चोली में फँस जाला l
These lines were written by my father Dhurandhar Singh.