ज़माने भर की दौलत कमा कर भी,
एक प्यास नहीं मिटती।
खूबसूरत जिस्म को पाकर,
रातें तो काट जाती हैं.
मगर अपनी मिटटी की सरहदों से दूर,
वो मीठी नींदें नहीं मिलती।
किस्मत में सबकुछ पाकर भी,
कितना तरपता हूँ माँ तेरे लिए.
की आज भी मेरी थाली की रोटियों में,
वो खुश्बूं तेरे हाथों की,
और वो स्वाद नहीं मिलती।
परमीत सिंह धुरंधर