रातों को ढल जाने दो,
सुबह को सीने में पल जाने दो.
दोपहर में,
मैं मिलूंगी तुमसे बलम जी,
मेरे तन पे ये धूप गिर जाने दो.
तुम मेरी कमर जब पकड़ते हो,
मैं कैसे फिर सोऊँ?
तुम्हारी उँगलियों के रहते मेरी जुल्फों में,
मैं कैसे अपनी आँखों में नींद लाऊं?
तुम ये रातों का दीप, पूरा जल जाने दो,
ये चाँद -तारे, उषा के आँचल में छुप जाने दो.
दोपहर में,
मैं मिलूंगी तुमसे बलम जी,
मेरी वक्षों पे भी थोड़ी ये धूप गिर जाने दो.
परमीत सिंह धुरंधर