बम-बम भोले, बम-बम भोले,
ये कैसा है खेल जिंदगी का.
तन्हा हैं हम, अकेले हैं हम,
कोई नहीं है इस जीवन का.
तुम तो कैलास पे विराज गए स्वामी,
मुझे यूँ धरती पे अकेला छोड़ के.
तुम तो आँखें मुद ध्यान में लीं हो गए,
मुझे दर्द में, पीड़ा में छोड़ के.
बम-बम भोले, बम-बम भोले,
ये कैसा है खेल जिंदगी का.
तन्हा हैं हम, अकेले हैं हम,
कोई नहीं है इस जीवन का.
मुझे माटी से इतना प्रेम दे के,
मुझे माटी से दूर कर गए.
मेरी आँखों में इतना ख्वाब दे कर,
फिर क्यों इसमें इतना आंसूं भर गए?
मैं रोता हूँ, मैं चिल्लाता हूँ,
अब क्या करूँ इस जीवन का?
बम-बम भोले, बम-बम भोले,
ये कैसा है खेल जिंदगी का.
तन्हा हैं हम, अकेले हैं हम,
कोई नहीं है इस जीवन का.
परमीत सिंह धुरंधर