इतनी भी शिकायत न करो, की तन्हाई आ जाए,
तुम्हारे सितम के आगे मेरी परछाईं आ जाए.
जरा सोचो कभी,
कब तक मैं तुम्हें यूँ ही सहती और ढोती रहूंगी,
ऐसा न हो की,
मेरी जिंदगी में कहीं कोई और आ जाए.
परमीत सिंह धुरंधर
इतनी भी शिकायत न करो, की तन्हाई आ जाए,
तुम्हारे सितम के आगे मेरी परछाईं आ जाए.
जरा सोचो कभी,
कब तक मैं तुम्हें यूँ ही सहती और ढोती रहूंगी,
ऐसा न हो की,
मेरी जिंदगी में कहीं कोई और आ जाए.
परमीत सिंह धुरंधर