तुम्हे अपनी नजरों से इसारे कर दूंगी,
ना माने अगर बाबुल तो भी तुमसे बच्चे कर लुंगी।
दुनिया चाहे जो भी नाम दे दे मुझे,
पति को दे के जहर, तुम्हारी ता – उम्र गुलामी कर लुंगी।
एक सनक सी सवार है मस्तक पे मेरे,
तुझे पाने के लिए, हर गुनाह कर दूंगी।
रहती हूँ भोली – भाली सी घर – शहर में,
मगर तुझे अपना बनाने को, कमीनी बन लुंगी।
कुछ लोग सनकी होते हैं. उनके मस्तक पे एक सनक सवार होती है. तूफ़ान भी आ जाए, और अगर वो निकल चुके हैं घर से तो , वापस नहीं लौटेंगे। वो मिट जाएंगे, दुनिया हँसेगी, लेकिन उनको अपनी सनक, अपनी मौत से ज्यादा प्यारी है. ऐसे लोगो की हार नहीं होती, भले दुनिया उन्हें हारा हुआ समझे। ये लोग भले ज्यादा दिन न रहे, राज न करे, पर जब तक होतें हैं, एक बंटवारा तो हुआ रहता है समाज का उनके नाम पे, उनके काम पे.
परमीत सिंह धुरंधर