तुम्ही हो शक्ति, तुम्ही हो भक्ति,
धरती पे तुम हो, सृष्टि की अनुपम कृति।
इतिहास को बदल दो कुछ ऐसे,
की जमाना भी जान ले,
तुम ही हो श्री धुरंधर सिंह की सुपुत्री।
ता उम्र जो चमका सूरज बनके इस अम्बर पे,
तुम उसके प्रकाशकुंज से बनी एक चाँद हो.
बस एक बार निकलो बादलो को काट के,
फिर चारो तरफ होगी तुम्हारे ही किरणों की दृष्टि।
परमीत सिंह धुरंधर