मुझसे मत पूछो यारों,
मेरे पास दिल है की नहीं।
दिल तो कब का टूट गया २००३ में,
अब तो मेरे ह्रदय में,
एक दरिंदा धड़कता है.
अब मौका मिले तो,
दबोच लूँ, खरोंच दूँ.
कहीं दन्त, तो कहीं नख के,
निशान छोड़ दूँ.
अश्रुओं की धारा में,
मैं भी उसकी मोहब्बत को,
तड़पती, विलखती,
चीत्कारती छोड़ दूँ.
मेरी मोहब्बत को जब,
उसने तार-तार किया चौराहे पे.
तब से मेरे मनो-मस्तिक में,
ये नंगापन बस गया है.
और मेरी हसरतों में,
अब बस सिर्फ हवस-ही-हवस है.
परमीत सिंह धुरंधर