तमन्ना क्या करे दिले नादान भी,
शौक है समंदर का, जमीन रेत की.
हँसते हैं सब कह के मेरी औकात ही क्या?
वो क्या समझेंगे जो [पढ़ते हैं बस शक्लो -सूरत ही.
परमीत सिंह धुरंधर
तमन्ना क्या करे दिले नादान भी,
शौक है समंदर का, जमीन रेत की.
हँसते हैं सब कह के मेरी औकात ही क्या?
वो क्या समझेंगे जो [पढ़ते हैं बस शक्लो -सूरत ही.
परमीत सिंह धुरंधर