मैं समंदर को हलक से पी जाऊं,
ए शिव मुझको दे दो इतनी शक्ति ना.
सारे अमृत त्याग दूँ, और गरल पी जाऊं,
ए शिव मुझको दे दो इतनी शक्ति ना.
जीवन का हर अपमान पी जाऊं,
मुस्करा कर दुश्मनों से मिलूं।
तन्हाई हो बस मेरी, मैं अलख जगा दूँ ना.
ए शिव मुझको दे दो इतनी शक्ति ना.
अब कोई मेनका जो धरती पे अवतरित हो,
तो ना छला जाऊं, मैं विश्वामित्र सा.
राम सा मन को सयम में मैं बाँध जाऊं,
ए शिव मुझको दे दो इतनी शक्ति ना.
परमीत सिंह धुरंधर