नादानी ऐसी,
की कोई एक ख्वाब भी ना मिला।
बस राजपूतों में एक मैं ही हूँ,
और किसी को ये रक्त ना मिला।
भार सी हो गयी है ये जिंदगी,
किसी और के लिए जीने में.
इस राह में सब जोधा सी,
मेरे हृदय को,
किसी अजबदेह का प्रेम ना मिला।
परमीत सिंह धुरंधर
नादानी ऐसी,
की कोई एक ख्वाब भी ना मिला।
बस राजपूतों में एक मैं ही हूँ,
और किसी को ये रक्त ना मिला।
भार सी हो गयी है ये जिंदगी,
किसी और के लिए जीने में.
इस राह में सब जोधा सी,
मेरे हृदय को,
किसी अजबदेह का प्रेम ना मिला।
परमीत सिंह धुरंधर