हुस्न यूँ ही नहीं इठलाता है,
कितने खंजर चलाएं हैं इसने।
कोई प्यासा ही सो गया यहाँ,
कइयों को पिला के रुलाया है इसने।
परमीत सिंह धुरंधर
हुस्न यूँ ही नहीं इठलाता है,
कितने खंजर चलाएं हैं इसने।
कोई प्यासा ही सो गया यहाँ,
कइयों को पिला के रुलाया है इसने।
परमीत सिंह धुरंधर