इश्क़ कभी मत करो जुल्म की जंजीरों से,
यहाँ तख़्त बदल जाते हैं, जंजीरे नहीं बदलती।
सीखना है मोहब्बत तो सीखो हुस्न की आँखों से,
जिसके आशिक़ बदलते हैं हर रात, अदायें नहीं बदलती।
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ कभी मत करो जुल्म की जंजीरों से,
यहाँ तख़्त बदल जाते हैं, जंजीरे नहीं बदलती।
सीखना है मोहब्बत तो सीखो हुस्न की आँखों से,
जिसके आशिक़ बदलते हैं हर रात, अदायें नहीं बदलती।
परमीत सिंह धुरंधर