चलो हम इश्क़ करें
किसी अनजाने शहर में.
जहाँ तुम्हे भय हो,
अनहोनी का हर पल.
और मुझे डर हो,
अकेलेपन से.
जहाँ तुम इंतज़ार करो की,
कब कुछ आवाज हो,
इन खाली चार दीवारों में.
जहाँ मैं भी जल्दी – जल्दी घर आऊं,
ऊबकर अनजाने चेहरों के बीच से.
चलो हम इश्क़ करें
किसी अनजाने शहर में.
जहाँ तुम्हे भय हो,
मेरे फंस जाने का.
जहाँ मुझे डर हो,
तुम्हारे उड़ जाने का.
परमीत सिंह धुरंधर