या तो नजर ही झुकाया कीजिये,
या दुप्पटा ही रखिये सीने पे.
कुछ तो हो आसरा गरीब को,
वरना मुश्किल हैं जीने में.
महंगाई ऐसे बढ़ रही है,
कैसे पुरे करूँ दिल के सपने।
या तो घर ही चला लूँ.
या पैसे उड़ा दूँ पीने में.
परमीत सिंह धुरंधर
या तो नजर ही झुकाया कीजिये,
या दुप्पटा ही रखिये सीने पे.
कुछ तो हो आसरा गरीब को,
वरना मुश्किल हैं जीने में.
महंगाई ऐसे बढ़ रही है,
कैसे पुरे करूँ दिल के सपने।
या तो घर ही चला लूँ.
या पैसे उड़ा दूँ पीने में.
परमीत सिंह धुरंधर