अरमाँ दिल के तुम चुराने लगे हो,
निगाहों से विजली गिराने लगे हो.
कभी तो हटाओ ये चिलमन रुख से,
की परमीत को पागल बनाने लगे हो.
हसरतें जवानी की बढ़ने लगी हैं,
तुम्हारी कमर पे नजर टिकने लगी हैं.
मत रखों किताबों को सीने से दबा के,
ये किताबें दुश्मनी का पाठ पढ़ाने लगे हैं.
ये चलना तुम्हारा, ये मुस्कराना तुम्हारा,
इसके सिवा कुछ भाता नहीं है.
हौले – हौले से रखों क़दमों को जरा,
ये वक्षों का स्पंदन मुझे बहकाने लगे हैं.
इन निगाहों से, इन लबों से,
ना रखों प्यासा हमें।
तेरी चोली के बटन पे हम,
मरने लगे हैं
परमीत सिंह धुरंधर