मेरा प्रेम घुट कर रह गया,
बस बन कर मेरी कलम की लिखावट।
कोई मिला ही नहीं, की जीवन निसार कर दूँ,
देख – देख कर उसकी मुस्कराहट।
बस ख़्वाबों तक ही सिमित रहा,
मेरा और उसका चुम्बन।
कानों की किस्मत में कहाँ?
की सुने उनके कदमो की आहट.
जाने रब ने क्यों ना लिखा?
बना के मुझे किसी लड़की की चाहत।
परमीत सिंह धुरंधर