सफर कैसा भी हो, इश्क़ कीजिये।
जिंदगी कैसी भी हो, गुरुर कीजिये।
खुदा से कुछ मिले या ना मिले,
पर खुदा के दर पे, सजदा जरूर कीजिये।
गुनाहों का समुन्दर बहुत ही गहरा है.
इसमें उतरने से पहले, निकलने का हुनर कीजिये।
हुस्न के विषय में क्या लिखूं दोस्तों?
इनकी बाहों में उतर कर खुद को ना मगरूर कीजिये।
परमीत सिंह धुरंधर
परमीत सिंह धुरंधर