मुख मोड़ कर खड़ी है,
समझाऊं कैसे?
दिल तोड़ कर खड़ी हैं,
मनाऊं कैसे?
कमर पे चोटी लटके,
वीणा में तार जैसे।
बीच में लक्ष्मण रेखा पड़ी है,
पास जाऊं कैसे।
धुरंधर सिंह
These lines were written by my father Dhurandhar Singh.
मुख मोड़ कर खड़ी है,
समझाऊं कैसे?
दिल तोड़ कर खड़ी हैं,
मनाऊं कैसे?
कमर पे चोटी लटके,
वीणा में तार जैसे।
बीच में लक्ष्मण रेखा पड़ी है,
पास जाऊं कैसे।
धुरंधर सिंह
These lines were written by my father Dhurandhar Singh.
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