जिंदगी में अकेला पड़ गया हूँ,
तन्हाई में तन्हा पड़ गया हूँ.
दोस्तों के नाम पे बस,
एक घड़ी ही रह गयी है साथ में.
जिसके अलार्म को मैं अनसुना करने लगा हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर
जिंदगी में अकेला पड़ गया हूँ,
तन्हाई में तन्हा पड़ गया हूँ.
दोस्तों के नाम पे बस,
एक घड़ी ही रह गयी है साथ में.
जिसके अलार्म को मैं अनसुना करने लगा हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर