हर कोई ताजमहल बना रहा है,
अपने महबूब के लिए.
और फिर तलाक भी लिख रहा है,
अपने दूसरी मुमताज के लिए.
मैं वो शख्श नहीं जो समझौते करूँ,
मैंने कलम उठा ली है एक बगावत के लिए.
क्या सम्मान, क्या अपमान?
है सब सामान।
मेरी लालसा नहीं किसी तख्तो-ताज के लिए.
जवानी का मेरे ये उद्देश्य नहीं,
की राते गुजरे किसी खासम-खास के लिए.
परमीत सिंह धुरंधर