इंसानियत में फ़र्ज़ रखता हूँ,
गुनाहों में सब्र रखता हूँ.
वो जो हँसते हैं मुझपे,
बस उनकी ख़ुशी के लिए,
ये एक दर्द रखता हूँ.
हुस्न को देख लिया है इतने करीब से,
की अब इश्क़ में मौन रखता हूँ.
वो चाहे जितने भी लिख लें,
सीता – सावित्री के किस्से।
मैं केवल मेनका – ये एक शब्द लिखता हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर