जिंदगी ने मुझे उजाड़ा है बहुत,
पर मैं एक कैक्टस हूँ,
उग ही जाता हूँ.
बादलों ने कभी भी सींचा नहीं मुझे,
पर मैं एक बाबुल हूँ,
खिल ही जाता हूँ.
मुझमे कोई गुण नहीं,
ना ही कोई खूबियाँ।
पर मैं एक धतूरा हूँ,
शिव के चरणों में चढ़ ही जाता हूँ.
दुश्मनों के बीच, हर पल,
हर पल में उनकी साजिस।
मगर मैं एक शिव – भक्त हूँ,
अंत में जीत ही जाता हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर