यूँ ही नजरों से मिला के नजरों को,
घूँघट को हटा दीजिये।
चंद साँसे मेरी, छू लें आपकी अधरों को,
बस वक्षों को अपने मेरे सीने पे टिका दीजिये।
शर्म को यूँ ही पलकों में रखिये पिघला के,
बस चोली को वक्षों से गिरा दीजिये।
शौक मुझको हैं कैसे – कैसे, ये कैसे कहूं?
बस सबुहा तक खुद को, मुझे दे दीजिये।
परमीत सिंह धुरंधर