कुछ ख्वाब रह जाने दे सीने में,
अधरों तक लाके पैमाना छोड़ दे.
एक शाम गुजार के बस,
ये दीवाना छोड़ दे.
ना तू मिले फिर, ना मैं फिर मिलूं,
इन राहों को यूँ ही अधूरा छोड़ दे.
मेरी नजरें फिसल रही हैं तेरे जिस्म पे,
तू अब तो चोली की डोर छोड़ दे.
हवाओं का रुख बदलने लगा है,
मेरे दिल तू अब किसी का भी भरोसा छोड़ दे.
एक शाम गुजार के बस,
ये दीवाना छोड़ दे.
परमीत सिंह धुरंधर