यूँ ही नहीं हैं बहारें मेरी किस्मत में,
मैंने कइयों को रौंदा हैं, टकराने पे.
तूफानों को भी पता है, मेरे गावँ का पता,
यूँ ही नहीं मुख मोड़ लेती हैं आंधियाँ मेरे दरवाजे से.
परमीत सिंह धुरंधर
यूँ ही नहीं हैं बहारें मेरी किस्मत में,
मैंने कइयों को रौंदा हैं, टकराने पे.
तूफानों को भी पता है, मेरे गावँ का पता,
यूँ ही नहीं मुख मोड़ लेती हैं आंधियाँ मेरे दरवाजे से.
परमीत सिंह धुरंधर