मैं खेलता ही नहीं,
खेलता भी हूँ.
मैं डीप जलाता ही नहीं,
दीपमाला बनाता भी हूँ.
यूँ ही नहीं कहते सभी,
मुझे मायावी और छलिया।
मैं पालता – पोसता ही नहीं सृष्टि को,
इसको नचाता भी हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर
मैं खेलता ही नहीं,
खेलता भी हूँ.
मैं डीप जलाता ही नहीं,
दीपमाला बनाता भी हूँ.
यूँ ही नहीं कहते सभी,
मुझे मायावी और छलिया।
मैं पालता – पोसता ही नहीं सृष्टि को,
इसको नचाता भी हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर