मेरा गली – गली में भटकना,
वो मज़ा कहाँ तेरे शहरों में?
मैंने पकड़े हैं कई चिड़ियाँ,
ताल – तलैयाँ और मुंडेरों पे.
वो चिड़ियाँ कहाँ बसते हैं?
हाँ तुम्हारे शहरों में.
मेरा वो निकलना साँझ ढलें,
और उनका छज्जे पे आना.
वो कंघी का करना सवरें बालों में,
और मेरा घंटों तकते रहना।
वो दीवारें प्रेम में,
कहाँ तुम्हारे शहरों में?
यहाँ मदिरा है, पान है,
पर वो ताड़ी कहाँ इन शहरों में?
यहाँ महफ़िल है, प्यार है,
पर वो इंतज़ार कहाँ इन शहरों में.
परमीत सिंह धुरंधर