तुम मेरी धड़कनों में बस गए हो,
मेरी जान बनके।
कभी मेरी जान भी बन जावों,
मेरे जिस्म में उतर के.
इन आँखों को चुभते हो तुम,
जब गैरों के गले लगते हो.
मेरा भी क़त्ल कर दो तुम,
मेरी ही खंजर बन के.
तुम्हे महफ़िल का शौक है तो,
मुझे शमा बना लो अपनी महफ़िल का.
एक रात ही सही, उतर आवो मेरी पहलु में,
परवाना बन के.
परमीत सिंह धुरंधर