दुकानों से मत पूछों गरीबों का पता,
अब कहाँ रह गया है उनका कोई एक ठिकाना।
जुगनू तो अब कहीं चमकते नहीं,
और ना कोई अब जलाता है दिया दिवाली का.
परमीत सिंह धुरंधर
दुकानों से मत पूछों गरीबों का पता,
अब कहाँ रह गया है उनका कोई एक ठिकाना।
जुगनू तो अब कहीं चमकते नहीं,
और ना कोई अब जलाता है दिया दिवाली का.
परमीत सिंह धुरंधर