मैं विद्रोही हूँ, विरोधी हूँ,
हर तंत्र का, हर मंत्र का.
मैं अख्खड़, भुख्खड़, घुमक्कड़,
बिहारी हूँ,
मेरे नस – नस में रस विरह का.
तुम पंडित, ज्ञानी,
गुलाबधारी हो.
हम सबके पेट में,
भूख और बीमारी है.
तुम बेताब हो,
गोरी महारानी के पावँ चूमने को.
जिसने भारत की लाखों कोख,
उजाड़ी है.
तुम सूट – बूट वाले,
तुम्हारे तन – मन, अंतर्मन, स्वप्न,
में बस चाह है, चमड़ी और दमड़ी का.
मैं धोती – गमछा, सतुआ वाला,
निर्मोही, बिहारी हूँ,
मेरे नस – नस में रस विरह का.
बाबा नागार्जुन की रचना “आवो महारानी हम उठाएंगे पालकी, ये ही आज्ञा हुई है जवाहरलाल की” को सम्पर्पित।
परमीत सिंह धुरंधर