ए समुन्दर,
तुझे क्या अहसास है मेरे ओठों का?
तूने पीया है,
मैंने सींचा है.
तुमने बाँधा है,
मैंने खिलाया है, उड़ाया है.
तुम्हारे गर्भ में अन्धकार है,
मैंने हर आँगन में दीप जलाया है.
परमीत सिंह धुरंधर
ए समुन्दर,
तुझे क्या अहसास है मेरे ओठों का?
तूने पीया है,
मैंने सींचा है.
तुमने बाँधा है,
मैंने खिलाया है, उड़ाया है.
तुम्हारे गर्भ में अन्धकार है,
मैंने हर आँगन में दीप जलाया है.
परमीत सिंह धुरंधर