जात – धर्म – मजहब में बंधकर,
कब किसने दोस्त बनाया है?
विस्मिल को आस्फाक मिलें,
तो मैंने भी आफताब को पाया है.
अपनों ने ही लुटा है,
खंजर पीठ में गड़ा के.
सिरोजदुल्ला को मीरजाफर मिलें,
तो पृथ्वीराज को जयचंद ने हराया है.
कब नारी ने सम्मान के बदले,
सम्म्मान लौटाया है.
जिसने उसे भेजा गैरों के बाहों में,
मेनका ने उसकी के लिए मातृत्व को ठुकराया है.
परमीत सिंह धुरंधर