सीना – सीने से लगाकर,
वो बोली धीरे से कानों में,
कोई तो एक फूल खिला दो,
अब इस आँगन में.
मन ऊब गया है इस खेल से,
जो खेलते हैं बस बंद कमरे में.
कोई तो एक खिलौना दे दो,
की मैं भी खेलूँ खुले आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर
सीना – सीने से लगाकर,
वो बोली धीरे से कानों में,
कोई तो एक फूल खिला दो,
अब इस आँगन में.
मन ऊब गया है इस खेल से,
जो खेलते हैं बस बंद कमरे में.
कोई तो एक खिलौना दे दो,
की मैं भी खेलूँ खुले आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर