सखी कैसे खेलीं होली?
सैंया बना दे ता हर साल लरकोरी।
अतना ना अब हो गइल बा झुलौना,
कोई कंधा पे कूदे, त कोई धइले रहे साड़ी।
रोजे रतिया पीया के कहेनी,
तनी रउरो सोची परिवार – नियोजन के,
त खटिया से कहेली सास,
अभी देखे के बा अउरो उनकरा पोता – पोती।
सखी कैसे खेलीं होली?
सैंया बना दे ता हर साल लरकोरी।
परमीत सिंह धुरंधर