गुले – गुलशन को सँभालते हैं वो,
जिनके इंतज़ार में दम निकला मेरा।
ज़माने भर की हया लेकर मिले वो,
जब भी मिले,
बस हम ही से रहा एक घूँघट उनका।
परमीत सिंह धुरंधर
गुले – गुलशन को सँभालते हैं वो,
जिनके इंतज़ार में दम निकला मेरा।
ज़माने भर की हया लेकर मिले वो,
जब भी मिले,
बस हम ही से रहा एक घूँघट उनका।
परमीत सिंह धुरंधर