चलते रहना है जीवन में,
आँधियों में, तूफ़ान में.
डटे रहना है भीष्म सा,
चाहे गोविन्द ही हों मैदान में.
हम राजपूत हैं, झुक सकते नहीं,
चाहे मौत मिले पुरस्कार में.
चलते रहना है जीवन में,
धुप में, छावं में.
डटे रहना है कर्ण सा,
चाहे अन्धकार ही लिखा हो भाग्य में.
कब औरत ने भला किया है?
जो दंश रहे इस विरह का.
मैंने तो रोते देखा है,
विश्वामित्र – परुवरा, सबको प्रेम में.
डटे रहना है राम सा,
बस अपने पथ पे.
परमीत सिंह धुरंधर