वक्त कुछ ऐसे मुझ पे सितम कर रहा है,
की हर शख़्स मुझसे मुख मोड़ रहा है.
क्यों ना हो शहर में चर्चा तेरे हुस्न का?
हर रात जो तेरी चोली का बटन टूट रहा है.
परमीत सिंह धुरंधर
वक्त कुछ ऐसे मुझ पे सितम कर रहा है,
की हर शख़्स मुझसे मुख मोड़ रहा है.
क्यों ना हो शहर में चर्चा तेरे हुस्न का?
हर रात जो तेरी चोली का बटन टूट रहा है.
परमीत सिंह धुरंधर