एक पगली लड़की के अरमान देखिये,
दर्पण में देखती अपने ही अंगों को,
गरीबी के चादर में,
प्रकीर्ति का अद्भुत श्रृंगार देखिये।
भारत की धरती पे,
किसी जगह के एक कोने में,
कुपोषित बचपन पे,
भारी यौवन का प्रहार देखिये।
नित – नित खिलती जा रही,
माँ – बाप के आँखों की नींदें उड़ाती,
भुखमरी के आँगन में,
प्रस्फुटित ये ज्वार देखिये।
परमीत सिंह धुरंधर