एक पगली लड़की के अरमान देखिये,
बिना चूड़ी, बिना कंगन के,
बिना पायजेब के उसका श्रृंगार देखिये।
एक टकटकी सी लग जाती है,
जब वो निकलती है.
कच्ची उम्र में ही,
उसके अंगों का मल्हार देखिये।
अधर खुलते नहीं, और वो सब कह जाती है.
अधखुली पलकों से सब का मन मोह जाती है.
नाजुक तन – बदन पे, यौवन का,
प्रबल -प्रखर, प्रवाह देखिये।
एक पगली लड़की के अरमान देखिये,
इस वीराने, उरस जमीन पे एक गुलाब देखिये।
परमीत सिंह धुरंधर