कहाँ है वो नशा जीवन का?
वो खुशियाँ, वो मस्ती,
वो मज़ा जीवन का.
वो रिश्तेदारों के कहकहे,
वो दादा – दादी की कहानियाँ।
वो नौक – झौंक,
वो रुस्सा – रुसववाल।
वो आँगन में दो चूल्हे,
और एक थालियाँ।
कहाँ है वो नशा जीवन का?
वो खुशियाँ, वो मस्ती,
वो मज़ा जीवन का.
वो खपरैल के घर में,
खुले आँगन में,
गीत गाती लड़कियाँ।
सिलवट पे हल्दी पिसती,
चूल्हे पे खांसती,
वो जाँत और मुसल,
चलाती भाभियाँ।
कहाँ है वो नशा जीवन का?
वो खुशियाँ, वो मस्ती,
वो मज़ा जीवन का.
वो दो पतोह की सास बन चुकी,
ससुराल से मायके आयी,
लड़की को देखने उमड़ी भीड़.
और उस भीड़ में,
बूढ़े हो चले दामाद को,
दबाती, चींटी काटती नारियाँ।
कहाँ है वो नशा जीवन का?
वो खुशियाँ, वो मस्ती,
वो मज़ा जीवन का.
परमीत सिंह धुरंधर