इशारों को अगर समझों तो राज को राज ही रहने दो,
किस्से तो बहुत हैं मगर उनपे थोड़ा पर्दा भी रहने दो.
सब कहते हैं की मैं उनसे फंस गयीं हूँ,
मर्द हैं वों, चेहरे पे उनके दर्प, झूठा ही सही पर रहने दो.
अगर पंखुड़ियां ना खोले कलियाँ अपनी,
तो कैसे कोई भौरां, पराग कणों को चुरा ले जाए।
भोले – नादान हैं भोरें,
उन्हें यूँ ही लुटेरे बनके इठलाने दो.
परमीत सिंह धुरंधर