तनी धीमा करीं आग के दुवरा पे,
कोई अँचरा के हमार ना देख ले.
पूछे लागल बारी राउर माई आजकल,
कहाँ जा तारु आधी रात के किवाड़ खोल के.
छोड़ दी आज खटिया के राजा जी,
बिछा लीं चटाई आज भुइयां में.
ना होइ इ खेला रोज – रोज अब हमरा से,
कब तक करीं इ झूठ और ढोंग सास – पतोह से।
जाप और योग करे सब कोई रउर – हमरा उम्र के,
बस हमरा के फँसाइले बानी रउरा इह पाप – कर्म में.
परमीत सिंह धुरंधर