मेरी सखिया सब, अब कुँवारी ना रहीं,
बस एक मेरा ही निकाह अब तक न हुआ.
कैसे मिलूं रोज – रोज तुमसे यूँ चोरी – चोरी, छुपके?
की अब तो दर्जी भी मेरा ना रहा.
परमीत सिंह धुरंधर
मेरी सखिया सब, अब कुँवारी ना रहीं,
बस एक मेरा ही निकाह अब तक न हुआ.
कैसे मिलूं रोज – रोज तुमसे यूँ चोरी – चोरी, छुपके?
की अब तो दर्जी भी मेरा ना रहा.
परमीत सिंह धुरंधर