मैं क्या जाम उठाऊं अपने हाथों से?
निगाहें इस कदर तेरे वक्षों पे जम गयी हैं.
इरादे कैसे बदल जाते हैं जीवन में?
मेरी ये धड़कने स्वयं आज जान गयी हैं.
अगर विष को धारण किये विषधर है ये,
तो भी मेरे अधरों पे एक प्यास जग गयी है.
या तो हर ले मेरे समस्त जीवन को,
इन वक्षों पे सुला के?
या नीलकंठ सा झूम लेने दे,
क्यों की ये सिर्फ वक्ष नहीं,
मेरा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड बन गयी हैं.
परमीत सिंह धुरंधर