मधुर तेरी मुस्कुराहट का हमें राज पता है,
गोरी तेरे वक्षों से कोई खेल रहा है.
शीतलहर में तेरा यूँ चलना लचक – लचक,
यूँ इठला – इठला के रुकने,
और मुड़ने का हमें राज पता है,
गोरी तेरे वक्षों से कोई खेल रहा है.
गोरु – पखेरू सब सिथिल पड़े हैं,
बस एक तू ही है जो ज्वाला बनी है.
तेरे अंग – अंग के ज्वार का हमें राज पता है,
गोरी तेरे वक्षों से कोई खेल रहा है.
परमीत सिंह धुरंधर