दे दो, अपना सब दे दो,
अगर वो तुम्हारा प्रेम है, प्रेमी है,
तो सब कुछ अपना,
एक रात में ही उसको दे दो.
टुकड़े – टुकड़े में उसे देने से,
ताकि वो वर्षों तक तुमसे बँधा रहे,
अच्छा है, की पहली रात ही,
सब कुछ उसपे लुटा दो,
भले ही फिर वो न समीप आये.
अंगों का कसाव,
वक्षों का पड़ाव दे दो,
अधरों का जाम दे दो.
कमर की लचक,
साँसों की महक दे दो,
चूड़ियों की खनक दे दो.
उसे भिंगो – भिंगो के,
उसे बहका – बहका के,
ये एहसास दे दो,
विश्वास दे दो,
की वो ही तुम्हारा देवता, संसार है,
वो शक्तिशाली और तुम्हारा रक्षक है.
झूठा ही सही, भ्रम ही सही,
मगर उसके आगोस में,
उसके इशारों पे,
बिछ कर उसके चेहरे पे गर्व का दर्प दे दो.
आँखों की मस्तियाँ,
जुल्फों की लड़ियाँ,
जवानी की अंगड़ाइयाँ सब दे दो.
ये सोच कर,
की अब ये रात ना होगी।
ये जानकार,
की तुम कल फिर उसके साथ न होगी।
उसे छलने को नहीं,
खुद को बिका समझकर,
अपने शर्म को छोड़ कर,
बर्षों से बचाये धन को,
दर्पण में स्वयं को निहार – निहार कर,
उसको सम्पूर्ण सौंप दो.
वो दले, कुचले,
चूमे या दन्त – नख से काटे।
वो सवारें, निखारे,
या एक ही रात में निचोड़ कर छोड़ दे.
तुम बेधड़क – बेहिचक,
अपने तन के कपास को,
बिना ज्यादा सोचे – समझे,
क्षण में दूर कर दो.
अपने यौवन की अग्नि को
उसके पौरष के यग में समाहित कर दो.
तुम्हारे जिस्म,
तुम्हारे अंगों की पराकाष्ठा,
तुम्हारे यौवन,
और तुम्हारे औरत होने की सम्पूर्णता,
सब उसके इस विजयगाथा में है.
मर्द का प्रेम केंचुआ सा है,
इधर रोको,
तो उधर की राह में,
मुख मोड़ लेता है.
उसे शिव बन कर,
स्वयं विष धारण कर,
अपने सौंदर्य – अमृत का रसपान दे दो.
उसे मस्त करके,
उसी के बल के गर्व से मदमस्त गजराज कर दो.
अपना कौमार्या दे कर,
उसके मन – मस्तिक को दम्भ दे दो.
शिव सा अपना सर्वस्वा दे कर,
अहंकार से ग्रसित रावण कर दो.
Its dedicated to the poem “The Looking Glass”, written by Kamala Das.
परमीत सिंह धुरंधर