अपना कौमार्य दे कर उसे गजराज कर दो,
इस शीतलहर में, उसके नस – नस में,
प्रचंड अग्नि-कुंड जागृत कर दो.
अपना कौमार्य दे कर उसे गजराज कर दो.
वो उबल – उबल, दहक – धधक,
बिखरे तुम्हारे अंगों पे,
अपने सुगढ़ – सुडौल वक्षो पे,
ऐसा उसे विश्राम दे दो.
अपना कौमार्य दे कर उसे गजराज कर दो.
भ्रमर के पीछे कब तक भागोगी,
अब सिंह के साथ सहवास कर लो.
देख ले सारा हिन्द इस सत्ता को,
सहचर बनकर ऐसा शंखनाद कर दो.
अपना कौमार्य दे कर उसे गजराज कर दो.
परमीत सिंह धुरंधर